गुरुवार, 30 जुलाई 2020

देश के महत्त्वपूर्ण नदी घाटी परियोजनाएं


बराज (Barrage) और बांध (Dam) में अंतर 
               दोनों ही मानवनिर्मित संरचना है जो नदी के जल को नियंत्रित कर नहरों की ओर मोड़ने एवं बिजली उत्पन्न करने के उद्देश्य से बनाया जाता है।
              बराज (Barrage) - यह नदी के सम्पूर्ण लम्बाई के बीचो बीच बनाया जाता है। इसका निर्माण वही होता है जहाँ Meandering River  की धरातल समतल होती है। यह पानी की सतह से कुछ ही फ़ीट ऊँचा होता है जिसमे कई द्वारों कि श्रृंखला (Series of Gates) बनाई जाती है। इसको बनाने का मुख्य उद्देश्य जल की दिशा को मोड़ना होता है। परन्तु बराज के पीछे किसी प्रकार का कोई Reservoir या झील (Lake) नहीं बनता है। यह अपने नहरों को जल सीधे नदी से ही पंहुचा देता है।

                 बांध (Dam)यह नदी घाटी के बीचो बीच बनाई गई ऊँची दीवार है। जिसका मुख्य कार्य अपने पीछे बने Reservoir या झील में जल को रोक कर जल संग्रह करना  होता है ताकि इस जल का उपयोग सिंचाई और बिजली उत्पादन करने में किया जा सके। यह बाढ़ को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। बांध के शीर्ष के पास स्पिलवे फाटक (Spillway Gates) होता है जिससे नदी के जल को छोड़ा जाता है। 
          अंतत यह कह सकते है की बराज जल को घटाता (Subtract Water) और बांध जल को जोड़ता (Add Water) है।

-परियोजना का नाम          नदी             लाभान्वित राज्य  

चम्बल परियोजना                                                                          
1. जवाहर सागर बांध       चम्बल          राजस्थान
2. राणाप्रताप सागर बांध  चम्बल          राजस्थान
3. गाँधी सागर बांध          चम्बल          मध्य प्रदेश

  -यह नहर राजस्थान की सबसे महत्वपूर्ण परियोजना है। जिसका मुख्य उद्देश्य सिंचाई की सुविधा प्रदान कर शुष्क भूमि को कृषियोग्य बनाना और हरियाली लाना है। रावी और ब्यास नदियों का जल सतलज में गिराकर इस नहर का निर्माण किया गया  है। इंदिरा गाँधी के नाम पर इसे  इंदिरा गाँधी नहर कहा जाता है। यह संसार की सबसे लम्बी (500 KM ) नहर है। इससे राजस्थान नहर भी कहा जाता है।

दामोदर घाटी परियोजना - यह स्वतंत्र भारत की पहली नदी घाटी परियोजना है जो टेनेसी नदी घाटी परियोजना पर आधारित हैं। इस परियोजना के अंतरगर्त 8 बांध एवं एक अवरोधक बांध बनाये गए। इसके अलावे बोकारो, चंद्रपुरा एवं दुर्गापुर 3 तापीय विधुत गृहों की स्थापना की गई। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य बाढ़ पर नियंत्रण,जल विधुत उत्पादन  एवं  सिंचाई है। इस परियोजना से झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल  राज्यों को लाभ पहुँचता है।
1. तिलैया बांध                बरकार                
2. मैथान  बांध                बरकार            
3. बालपहाड़ी  बांध           बरकार  
4. कोनार बांध                 कोनार      
5. पंचेत पहाड़ी  बांध        दामोदर    
6. बर्मी बांध                    दामोदर      

फरक्का परियोजना -  परियोजना का मुख्य उद्देश्य गंगा और हुगली नदीयों में 


मयूराक्षी परियोजना - यह परियोजना पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और वीरभूमि ज़िले की भयंकर  बाढ़ से निपटने के लिए निर्माण की गयी। मयूराक्षी छोटा नागपुर पठार से निकलने वाली नदियाँ  हैं।  वर्षा के दिनों में  इस नदी का जलस्तर भयानक रूप से बढ़ जाता है। अतः इस समस्या के समाधान हेतु  नदी पर झारखंड के दुमका के निकट मसनजोर (Massanjor)  बनाया गया । मसनजोर बाँध को 'कनाडा बाँध' भी कहते हैं, क्योंकि इस बाँध को बनाने के लिए कनाडा ने वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई थी। मसनजोर बाँध के नीचे की ओर तिलपाड़ा बैराज़ बनाया गया है।


भाखड़ा-नांगल परियोजना -यह भारत का दूसरा सबसे ऊँचा बांध है ,जिसकी ऊँचाई 226 मी. है। यह भारत की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय परियोजना है। जो सतलज नदी पर बनाई गई है। बांध के बनने से उसके पीछे एक कृत्रिम झील का निर्माण हुआ  जिसे गोविन्द सागर झील कहते है। इस परियोजना से हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान को लाभ मिला।

व्यास परियोजना - इस  परियोजना के अंतरगर्त व्यास नदी पर पोंग बांध  बाँध बनाया गया है। इससे  हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान राज्यों को लाभ मिलता है।
                                                                                
थीन बांध परियोजना -पंजाब के पठानकोट ज़िले में इस परियोजना से पंजाब, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर राज्यों को लाभ मिलता है। 


हीराकुंड परियोजना - यह भारत  ही नहीं  विश्व की सबसे लम्बी  मुख्य धारा बांध है। इस बांध की लम्बाई 4.8 किलोमीटर हैं। इस परियोजना के अंतरगर्त ओडिशा राज्य में संबलपुर जिले महानदी पर हीराकुंड बाँध बनाया गया। इस बाँध का निर्माण कार्य 1948 ईo में प्रारम्भ हुआ और 1953 ईo में पूर्ण बनकर तैयार हो गया। परन्तु यह 1957 ईo से ही पूरी तरह से कार्य करना प्रारम्भ किया। इस बाँध के पीछे जो कृत्रिम झील बना उसे "हीराकुंड" कहते है। यह परियोजना राउरकेला स्टील प्लांट को विधुत प्रदान करती है। 

टिहरी परियोजना- यह बांध विश्व में 5 वीं और  भारत की  सबसे ऊँची बांध है जिसकी ऊँचाई 260.5 मी. है। इस बांध को  भिलंगना  एवं भागीरथी नदीयों  के संगम पर उत्तराखंड राज्य के टिहरी जिले में निर्माण की  गई। इस बांध को बनाने का कार्य 1978 ईo में प्रारम्भ की गई परन्तु आर्थिक, पर्यावरणीय आदि कारणों के बजह से देर से (2006 ईo) बनकर तैयार हुई।


रामगंगा परियोजना-   रामगंगा                           उत्तराखंड                        
रिहन्द परियोजना -     रिहन्द                              UP                                    
माताटीला परियोजना- माताटीला परियोजना उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सयुंक्त परियोजना है। यह ललितपुर के निकट 'तलबाहाट' में स्थित है। माताटीला बाँध की निर्माण सन 1958 ईo  में बेतवा नदी पर की गई थी। माताटीला परियोजना के अंतर्गत 10.2x3=30.6 मेगावाट की विद्युत इकाइयाँ लगाई गयी हैं।                    
राजघाट परियोजना-    बेतवा                               UP एवं MP                      
तवा परियोजना -         तवा                                  MP                                
मालप्रभा परियोजना -  मालप्रभा                           कर्नाटक
घाटप्रभा परियोजना -   घाटप्रभा                            कर्नाटक  
शरावती परियोजना-    यह परियोजना कर्नाटक राज्य के शरावती नदी पर बनाई गई है जिसपर 2 बांध बनाये गए है
1. गेरूसोप्पा बांध (Gerusoppa Dam)- शरावती      कर्नाटक
2. लिंगनमक्की बांध (Linganamakki Dam)- ))         ))    
ऊपरी कृष्णा परियोजना - कृष्णा                             कर्नाटक
महात्मा गाँधी (जोग) -  शरावती                              कर्नाटक
शिवसमुंद्रम परियोजना - कावेरी                              कर्नाटक
तुंगभद्रा परियोजना - इस परियोजना के अंतर्गत कृष्णा की सहायक नदी तुंगभद्रा नदी पर तुंगभद्रा बाँध बनाया गया है। इस नदी पर बनाया गया बाँध कर्नाटक में 'होस्पेट' नामक स्थान पर है। इस बाँध का निर्माण 1953 में पूरा हुआ। बाँध से निकालने वाली नहरों से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के ज़िलों की सिंचाई होती है। हम्पी के निकट 8 मेगावाट के 9 विधुत  सयंत्र लगाए गये हैं, जो कुल मिलाकर 72 मेगावाट विद्युत उत्पन्न करते 

पचमपाद परियोजना -  गोदावरी                               आंध्रप्रदेश
श्री सैलम परियोजना -  कृष्णा                                   आंध्रप्रदेश
निजाम सागर -            मंजरा                                   आंध्रप्रदेश
नागार्जुन सागर बांध परियोजना  - यह तेलंगाना राज्य नालगोंडा जिला में कृष्णा नदी पर स्थित है।  बौद्धभिक्षु नागार्जुन के नाम पर इसका नाम नागार्जुन सागर रखा गया। इस बाँध को बनाने की परिकल्पना 1903 में ब्रिटिश राज के समय की गयी थी। 10 दिसम्बर 1955 में इस बाँध की नींव तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने रखी थी। जो 1966 में बनकर पूरा हुआ।

मचकुण्ड परियोजना -  मचकुण्ड                            आंध्रप्रदेश एवं ओडिशा
पायकरा परियोजना -   पायकरा                              तमिलनाडु
मेटूर परियोजना -         कावेरी                                तमिलनाडु
पापनाशम परियोजना -ताम्रपर्णी                             तमिलनाडु  
परम्बिकुलम-अलियार परियोजना -परम्बिकुलम    तमिलनाडु एवं केरल
इडुक्की परियोजना -      पेरियार                             केरल
पल्लीवासल परियोजना -मदिरापूजा                        केरल
मुल्लापेरियार बांध -       मुल्लयार एवं पेरियार         केरल एवं तमिलनाडु
साबरमती परियोजना -   साबरमती                         गुजरात
उकाई परियोजना -         ताप्ती                               गुजरात
जमनालाल बजाज सागर परियोजना  - इसका नाम प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल बजाज के नाम पर रखा गया था। चुकी यह माही नदी के ऊपर बनाई गई है अतः इसे माही परियोजना के नाम से भी जाना जाता है। जोकि राजस्थान  एवं गुजरात की सीमा से सटे बाँसवाड़ा जिले (राजस्थान) में बनाया गया है। इस परियोजना से गुजरात एवं राजस्थान राज्यों को लाभ मिलता है।

सरदार सरोवर परियोजना -  सरदार सरोवर बाँध (Sardar Sarovar Dam) परियोजना दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है जिसका निर्माण नर्मदा नदी पर किया गया है जो इस नदी पर बनने वाले 30 बांधों में से एक है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य गुजरात के सूखाग्रस्त इलाकों में पानी पहुंचना और मध्य प्रदेश के लिए बिजली उत्पन्न करना है। परन्तु यह बांध दुनिया की  काफी विवादास्पद परियोजना में से एक है। इसके  विवादों का सबसे मुख्य मुद्दा, विस्थापित किये गए परिवारों की संख्या और  पर्यावरणीये  विनाश है। सरकार और पर्यावरणविद में जारी मतभेद और संघर्ष के बीच नर्मदा बचाओ आंदोलन (Save Narmada Movement) हुआ जिसने आगे चल कर अपनी ज़मीन के लिए संघर्ष कर रहे परिवारों की मदद की। इस आंदोलन का नेतृत्व मेघना पाटेकर ने की।                                       


सुवर्णरेखा परियोजना -   सुवर्णरेखा                    झारखण्ड
लोकटक परियोजना - 
दुलहस्ती परियोजना -     चिनाब                         जम्मू-कश्मीर
सलाल परियोजना -  इस परियोजना की शुरुआत सन 1961 ईo में जम्मू कश्मीर राज्य के उधमपुर जिले में  चिनाब नदी के ऊपर  की गई थी ।  

तुलबुल परियोजना -       झेलम                              जम्मू-कश्मीर
चुखा जल विधुत परियोजना - वांग्चू                        भारत एवं भूटान
टनकपुर बांध परियोजना - महाकाली                      भारत एवं नेपाल

वन और वन्य प्राणियों का संरक्षण

रेड डाटा बुक (Red Data Book)-
          भारत के दो संस्थाओं बोटेनिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (Botanical survey of India) और वन अनुसंधान संस्थान (Forest Research Institute) ने मिलकर 1970 में भारत की संकटग्रस्त जीवों एवं पादप (Plant) प्रजातियों की एक सूची तैयार की। इस सूची को ही Red Data Book कहा जाता हैं।

ग्रीन बुक (Green Book)-
          यह पुस्तक असाधारण पौधों (Rare Plant ) की सूची हैं।

          वन्य जीवों और पादपों को प्राकृतिक और कृत्रिम  प्रकार के आवास प्रदान करके उनको संरक्षण दिया जाता है ये दोनों इसप्रकार से है  -
(A) In Situ और

(B) Ex-Situ

(A) In Situ-
           जब  वन्य जीवों को उनके प्राकृतिक आवास में संरक्षित रखने का  प्रयास  किया जाता है तो इसे In Situ प्रयास कहा जाता  हैं। इसके अंतर्गत विस्तृत भूखंड को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाता है। जैसे-राष्ट्रीय उधान (National Park), अभ्यारण्य (Sanctuary), जैवमंडल (Biosphere Reserves), बाघ परियोजना (Project Tiger) इत्यादि

 (B) Ex-Situ-
            जब वन्य जीवों को कृत्रिम आवासीये  संरक्षन देकर बचाने का  प्रयास किया जाता तो इसे  Ex-Situ प्रयास कहते  हैं।  इनमे उन प्रजातियों को संग्रहित किया जाता है जिनके प्राकृतिक आवास नष्ट होने से  विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। जैसे -प्रजनन केंद्र (Breeding Centre )

 In Situ आवासीय  संरक्षण के तहत वन्य प्राणियों को निम्न संरक्षित क्षेत्रों में सुरक्षा प्रदान किया जाता है -
(i) राष्ट्रीय उधान (National Park)-
        यह एक विस्तृत क्षेत्र है जिसका उद्देश्य वन्य प्राणियों एवं वनस्पतियाँ को प्राकृतिक आवास में वृद्धि एवं प्रजनन की परिस्थितियाँ प्रदान किया जा सके। इसके अलावे इनका सार्वजनिक मनोरंजन तथा वैज्ञानिक उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके।  इन उद्यानों में कृषि कार्य, वन उत्पादों को एकत्रित करना, पशु चारण तथा निर्माण कार्य वर्जित (Prohibited) होता है। विश्व का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान सन 1872 में USA के "येलो स्टोन पार्क" (Yellow Stone Park) को बनाया गया था।  भारत का पहला राष्ट्रीय उधान (National Park) 1936 ईo  में हैली राष्ट्रीय उधान (Hailey National Park) को बनाया गया जो बाद में जिम कार्बेट राष्ट्रीय उधान (Jim Corbett National Park) के नाम से जाना गया। वर्तमान में भारत में कुल 166 राष्ट्रीय उधान हैं। बांधवगढ़, फॉसिल, कान्हा, दुधवा, काजीरंगा इत्यादि कुछ राष्ट्रीय उद्यान के उदहारण है।


(ii) अभ्यारण्य (Sanctuary)-
       यह एक ऐसा सुरक्षित क्षेत्र होता है जहाँ वन्य जीव सुरक्षित ढंग से रहते है।  इस क्षेत्र में कृषि, वन उत्पाद को एकत्रित करने , मछली पकड़ने आदि की सीमित छूट होती हैं। वन्य जीवों के स्वाभाविक जैविक क्रियाएँ जैसे - घोंसला बनाना , जोड़ा बनाना, अंडे या बच्चे सेवना आदि पर बाधा पहुँचाने पर मालिकाना अधिकार  सिमित किया जा सकता हैं।  भारत में इनकी संख्या 515 है। नामदफा,मानस, शरावती,पलामू ,सरिस्का इत्यादी कुछ  वन्य जीव अभ्यारण्य के उदहारण है


(iii) जैवमंडल (Biosphere Reserves)-
       यह वह क्षेत्र है जहाँ प्राथमिकता के आधार पर जैव विविधता के कार्यक्रम चलाए जाते है।  वर्तमान में विश्व में कुल 243 जैव मंडल है इनमें 18 जैव मंडल भारत में हैं। नीलगिरि को भारत का पहला जीव आरक्षण क्षेत्र 1986 में बनाया गया। इसके अलावे नंदा देवी, नोकरेक, मानस, सुंदरवन, मन्नार की कड़ी इत्यादि भारत के प्रमुख जैवमंडल के उदहारण है।


बाघ परियोजना (Project Tiger)-
           बाघ परियोजना विश्व की बेहतरीन वन्य जीव परियोजनाओं में से एक हैं और इसकी शरुआत 1973 में हुई। शुरू में इसमें काफी सफलता प्राप्त हुई क्योंकि बाघों की संख्या बढ़कर 1985 ईo  में 4002 और 1989  ईo में 4334 हो गयी।  परन्तु 1993 ईo में इसकी संख्या घटकर 3600 तक पहुँच गई।  वर्तमान में 50 बाघ रिजर्व भारत में है।  बाघ संरक्षण मात्र एक संकटग्रस्त जाति को बचाने का प्रयास नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर जैव जाति को बचाना भी है।  उत्तराखंड का कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल का सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश का बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान का सारिस्का वन्य जीव पशुविहार, असम का मानस बाघ रिजर्व, केरल का पेरियार बाघ रिजर्व आदि भारत के प्रमुख बाघ संरक्षण के उदाहरण है।


प्रजनन केंद्र (Breeding Centre ) - 
            प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवों के प्रजनन दर में कमी आती है। ऐसी कई प्रजातियाँ हैं जिनकी प्रजनन दर कम होने के कारण संकटग्रस्त सूची में शामिल हो गई हैं।  इसलिए ऐसे जीवों को Ex-Situ  संरक्षण के दर्मियान जीवों को प्राकृतिक आवास से निकाल कर मानवीय देख रेख में कृत्रिम आवास में पालन-पोषण और प्रजनन कराया जाता है। जैसे- मध्य प्रदेश में मुरैना घड़ियाल प्रजनन केंद्र, हरियाणा का भोर सोदान,  कुरुक्षेत्र  मगरमच्छ प्रजनन केंद्रउड़ीसा के नंदनकानन और मध्य प्रदेश का रीवा  में उजले बाघ का प्रजनन केंद्र, राजस्थान में जयपुर के निकट गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र की  स्थापना की गई है। 

हॉट स्पॉट (Hot Spot)-
             ये वे स्थान है जहाँ जीव एवं वनस्पतियों की संकटग्रस्त प्रजातियों की बहुलता हो। 1988 में नॉर्मेन मेयर्स (Normen Mayers) ने इन सीटू संरक्षण की प्राथमिकता के आधार पर करीबन 35 हॉट स्पॉट को चिंहित किया जिसमे से ज्यादातर Tropical Forest वाले  क्षेत्रों में अवस्थित है ।  भारत में 4  हॉट स्पॉट के चिन्हित किये गए है-
(i) पश्चिमी घाट (The Western Ghat)
(ii)  हिमालय (The Himalay)
(iii) इंडो-बर्मा प्रदेश (The Indo-Burma Region)
(iv) सुंडालेंड (Sundaland)- निकोबार द्वीप समूह

जैव अपहरण की समस्या (Bio Piracy Problem)-
          विकसित देशों में तकनीक के दुरूपयोग से उत्तम गुण के जीवों और वनस्पतियों के आनुवंशिक गुणों वाले जीन को दूसरे में प्रत्यारोपित कर नए प्रकार का संकर(Hybrid) पौधा या जीव तैयार किए जा रहे हैं।  इस हेराफेरी से विकासशील देशों को आर्थिक हानि पहुँच रही है। जैसेकि भारत के बासमती चावल से अमेरिका में धान (चावल) की एक नई प्रजाति विकसित हुई है जिसका प्लाज्मा बासमती के प्लाज्मा के समान है। 

भारत के वन एवं प्रकार (Indian Forest And Types)


       वैसे पौधों के समूह को जो प्रकृति में स्वतः उगते हो 
       बड़े-बड़े वृक्षों एवं झाड़ियों द्वारा ढंके हुए  विशाल क्षेत्र को 

पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem)
       वनस्पति (Vegetation) और वन्य प्राणी (Wildlife) में आपसी सम्बन्ध हुआ करता है और दोनों ही एक-दूसरे पर आश्रित (Dependent) होते हैं। यह पारस्परिक सम्बन्ध उस क्षेत्र के प्राकृतिक पर्यावरण (Environment) के साथ भी बना होता है। इसे 

      किसी विस्तृत क्षेत्र में पाए जाने वाले समस्त वनस्पति तथा प्राणियों का विशाल पारिस्थितिक समुदाय (Ecological Community)  
      भूतल पर वनस्पतियों तथा प्राणियों के वितरण प्रतिरूपों पर जलवायु (Climate) का सर्वाधिक प्रभाव होता है। यही कारण है की बायोम के प्रकारों का निर्धारण सामान्यता जलवायु प्रकार के अनुसार होता है। जैसे- टुंड्रा बायोम (Tundra Biome), शीतोष्ण कटिबंधीय बायोम (temperate zone Biome) , उष्ण कटिबंधीय बायोम (Tropical zone Biome)। जबकि स्थलीय तथा जलीय स्थिति के अनुसार बायोम को 2 वृहत वर्गों में बाँटा जाता है - स्थलीय बायोम (Terrestrial Biome) और जलीय बायोम (Aquatic Biome)। 

    भारत के विभिन्न जलवायु प्रदेशों में विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति का विकास हुआ है। यहाँ की प्राकृतिक वनस्पति के विकास एवं वितरण पर मुख्यः दो कारक (Factor) - 
        वर्षा (Rainfall ) की मात्रा के आधार पर 
  1. ऊष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन या वर्षा वन 
  2. ऊष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन
  3. ऊष्ण कटिबंधीय कँटीले वन और झाड़ियाँ                                     
  4.  पर्वतीय वनस्पति 
  5.  डेल्टाई या ज्वारीय वन

(1) उष्ण कटिबंधीय सदाबहार (Tropical Evergreen Forest)
     ये वनस्पति उन क्षेत्रों में पाई जाती है, जहा वार्षिक वर्षा 200 C.M से अधिक होती हो और वर्ष भर ऊँचा तापमान (औसत 24° C ) और वायु में  आर्द्रता 70 % से अधिक होती है। इन वनो में अधिक वर्षा होने के कारण इन्हे अर्द्ध उष्ण कटिबंधीय चिरहरित वन -Semi Tropical Evergreen Forest
         इन क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा तथा ऊँचा तापमान के कारन वृक्ष काफी सघन एवं  तेजी से बढ़ते है वृक्षों की सघनता इतना  अधिक होता  है की सूर्य का प्रकाश ज़मीन तक नहीं पहुँच पाता है। सूर्य प्रकाश प्राप्ति की होड़ में वृक्ष  प्रायः 60 मीटर या उससे अधिक ऊँचाई तक बढ़ जाते है। अथार्त वृक्ष Insurmountable) होता है। इन वनों प्रवेश कर लकड़ी काटना कठिन कार्य है क्योंकि यहाँ एक ही स्थान पर एक किस्म के वृक्ष न मिलकर अनेक प्रजातियों के वृक्ष मिश्रित अवस्था में मिलते है साथ ही इन वनों की लकड़ियाँ कड़ी और भरी होती है। 

ये वन प्राकृतिक वनस्पति,जैव विविधता से काफी  धनी है इन  वनों  में अनेक बहुमूल्य लकड़ियों के वृक्ष पाए जाते हैं जैसे 

(2) उष्ण कटिबंधीय  पर्णपाती वन (Tropical  Deciduous Forest)
  ये  पर्णपाती वन (Tropical  Deciduous Forest) का है।  ये वन अपनी पत्तियों को एक साथ भी कहते है।
वर्षा  मात्रा के आधार पर इनको पुनः 2 भागों में बाँटा जाता है। 
(A) उष्ण कटिबंधीय 
(B) उष्ण कटिबंधीय शुष्क 

आर्द्र पर्णपाती वन (Tropical  Wet Deciduous Forest)
इन वनो का विकास

(B)  पर्णपाती वन (Tropical  Dry  Deciduous Forest)
ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 

(3) उष्ण कटिबंधीय कटीले वन (Tropical Thorny  Forest)
ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 
      

(4) पर्वतीय  वन (Mountain Forests)
     जिस प्रकार धरातल पर अक्षांश  बदलने  से वनस्पति में बदलाव आ जाती है उसी प्रकार पर्वर्तों पर ऊँचाई के बढ़ने  से वनस्पति में बदलाव आ जाती है। 
      भारतीय पर्वतीय वनो को क्षेत्र के आधार पर 2 भागों में बाटा जा सकता है -
(A) प्रायद्वीपीय पर्वतीय वनस्पति  
(B) हिमालय क्षेत्र का पर्वतीय वन 
(A) प्रायद्वीपीय पर्वतीय वनस्पति (Vegetation of Peninsular Mt.) - ये वन प्रायद्वीपीय भारत में मुख्यतः पश्चिमी घाट, विंध्याचल और नीलगिरी पर्वतों पर पाये जाते है इन वनो को पुनः 2 उपवर्गों में बांटा जा सकता है - (i) आर्द्र उपोष्ण पहाड़ी वन और (ii) आर्द्र शीतोष्ण पहाड़ी वन
(i) आर्द्र उपोष्ण पहाड़ी वन (Subtropical humid mountain forest) - यह वनस्पति प्रायद्वीपीय भारत में 1070 से 1500 मीटर की ऊंचाई पर  पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, सतपुड़ा, महादेव मैकाल, नीलगिरि, कार्डामम एवं अन्नामलाई की पहाड़ियों पर पाई जाती है। यह वनस्पति सदाबहार होती है। वृक्षों की लकड़ियां लगभग मुलायम होती है। 

आर्द्र शीतोष्ण पहाड़ी वन (Temperate humid mountain forest)- यह वनस्पति प्रायद्वीपीय भारत में 1500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर  नीलगिरि, पालनी एवं अन्नामलाई की पहाड़ियों पर पाई जाती है।इन वनो को शोला (Shola) के नाम से जाना जाता है। ये वन अधिक सघन नहीं होते है परन्तु सतह पर झाड़ियाँ उपस्थित रहती है। इन वनों में प्रायः मैग्नोलिया, लारेल, यूक्लिप्टस, एल्म आदि वृक्ष पाये जाते है। जो की तेल और औषधियों के लिए उपयोगी वृक्ष है 


(i) उष्ण कटिबंधीय वनस्पति 
(ii) उपोष्ण कटिबंधीय वनस्पति 
(iii) शीतोष्ण कटिबंधीय वनस्पति और 
(iv) अल्पाइन वनस्पति। 
     

(i) उष्ण कटिबंधीय 

(ii) उपोष्ण कटिबंधीय (Tropical Deciduous Vegetation)- पश्चिम की ओर  घटती वर्षा और बढ़ती ऊँचाई के कारण वर्षा वनों के बजाये उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनस्पति उगते हैं। इन वनों में मुख्य रूप से साल, शीशम , सागवान , बांस के वृक्ष एवं सबई घास उगते है। 920 मी. की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आर्द्र साल वृक्ष और 1,370 मी. की ऊँचाई पर शुष्क साल वृक्ष के वन मिलते है।
(iii) शीतोष्ण कटिबंधीय वनस्पति (Temperate Tropical Vegetation)- बांज (Oak), भोजपत्र (Birch), मैग्नेलिया, एल्डर , लारेल, चीड़, स्प्रूस, देवदार (Cedar) आदि वृक्ष। बांज (Oak) और शंकुधारी वृक्षों के सदाहरित वन लघु हिमालय (Lesser Himalaya) की पर मिलते है। 920 मी. से लेकर 1,640 मी. की ऊँचाई तक चीड़ प्रमुख वृक्ष हैं। देवदार एक अत्यंत मूल्यवान  स्थानीय प्रजाति का वृक्ष है।जो 2700 मी. की ऊँचाई पर मुख्य रूप से हिमालय की श्रेणी के पश्चिम भाग में उगता है। नीला चीड़ और स्प्रूस 2225 मी. से 3048 मी. की ऊँचाई के बीच उगते है। 
(iv) अल्पाइन वनस्पति (Alpine Vegetation)-और चरागाह (Meadows)  की झाँकी पस्तुत करती है जिसे काश्मीर में मर्ग कहते है (जैसे- गुलमर्ग, सोनमर्ग) और उत्तराखंड में बुग्याल एवं पयाल कहा जाता है (जैसे फूलों की घाटी- गढ़वाल हिमालय)। अल्पाइन वनस्पति पश्चिमी हिमालय में 3900 मी. तथा पूर्वी हिमालय में 4450 मी. की ऊँचाई तक विस्तृत हैं।  


(5) डेल्टाई वन (Delta Forest)
    यह एक विशेष प्रकार की वनस्पति है जो समुन्द्र तटीय क्षेत्रों के डेल्टाई एवं दलदल प्रदेशों में पाये जाते हैं।  यहाँ समुन्द्र का खारा जल तथा नदियों के मीठा जल के मिश्रण वाले क्षेत्र में एक विशेष प्रकार का पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण होता है जिसमे डेल्टाई वन के विकास होता है। यह वनस्पति चिरहरित वनो का ही एक प्रकार है जिनके जड़ें पानी के ऊपर निकली हुई होती है जो  जटा की तरह या पक्षियों के पंजे के सामान दिखाई देती है।  इन्हे 
    ये वन  बंगाल की खाड़ी के तटीय प्रदेशों में  गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों के डेल्टाई भाग पश्चिम बंगाल),  महानदी के डेल्टाई क्षेत्र  (उड़ीसा), गोदावरी एवं कृष्णा नदी के डेल्टाई क्षेत्र  (आंध्र प्रदेश) और कावेरी नदी  डेल्टाई क्षेत्र (तमिलनाडुऔर कच्छ , काठियावाड़ (गुजरात), खम्भात की खाड़ी के तटीय प्रदेशों में पाए जाते हैं। इन वनों में मुख्यत  जल मे न सड़ पाने के कारण इनका उपयोग नाव बनाने में किया जाता हैं। सुंदरवन का नाम सुंदरी वृक्ष के नाम पर पड़ा।

वन एवं वन्य प्राणी संसाधन


वन एवं वन्य प्राणी संसाधन 

       वन उस बड़े भू-भाग  को कहते हैं जो पेड़ पौधों एवं झाड़ियों द्वारा आच्छादित होते हैं। ऐसे प्रकृति में स्वतः से उत्पन्न होने  वाले वन को प्राकृतिक वन (Natural Forest) और मानव द्वारा विकसित किये गए वन को वानिकी वन (Forestry Forest)  कहते है। वन एक नवीकरणीय संसाधन (Renewable Resource) है। जिन्हें  पुनः ऊगा कर बार बार प्राप्त किया जा सकता है। 
       वन जीवन का  प्रमुख हमसफ़र रहा हैं।  हमारी भारतीय प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का विकास भी वनों से  ही प्रारम्भ  हुआ है । आदीकाल से ही  वन  ऋषि-मुनियों  की निवास स्थल एवं तापों भूमि के रूप में रही है। हमारे वेद और पुराणों  की  रचना भी  वनों के शांत वातावरण में ही हुई। परन्तु आज आधुनिकता की दौड़ में हमने अपने अतीत की परम्पराओं को नकार दिया और वनो का दोहन करना शुरू कर दिया है , परिणामस्वरूप कई समस्याऐ  उत्पन्न होने लगी है जैसे वर्षा में कमी (Reduction in Rainfall), भू  तापमान में वृद्धि (Earth Warming), भूमि कटाव  (Soil erosion)  इत्यादि।   जबकि वन पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवज के सामान होती है।  यह केवल एक संसाधन ही नहीं बल्कि पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण, स्वच्छ वातावरण प्रदान करने और वर्षा करने  में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती  हैं।

वन विस्तार (Extension  of Forest)
     वन विस्तार के नजरिये से भारत विश्व का दसवाँ देश है, यहाँ करीब 68 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर वन का विस्तार मिलता है।जबकि रूस (Russia) वन के क्षेत्रफल की दृष्टि से  विश्व का सबसे बड़ा  देश है।
विश्व के 10 वृहम वन क्षेत्र वाले देश 
1. रूस (Russia)
2. ब्राज़ील (Brazil),
3. कनाडा (Canada),
4. सयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America),
5. चीन (China),
6. कांगों (Congo),
7. ऑस्ट्रेलिया  (Australia),
8. इंडोनेशिया (Indonesia) और
9. सूडान (Sudan)
10. भारत (India)

        भारत राज्य की वन रिपोर्ट (India State of Forest Report- ISFR), 2015  अनुशार, देश में कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.16% भाग पर वनों का विस्तार पाया जाता है। जबकि क्षेत्रीय विस्तार असमान है पहाड़ो में सघन वन मिलते है तो मैदाने प्रायः वनविहीन (Forest less) हो गए है। वर्तमान में सघन वन भारत हिमालयीय राज्य (Himalayan States), पूर्वोत्तर राज्य (North-East States) एवं पश्चमी घाट की पहाड़ियों (Western Ghat Hills) पर पायी जाती है।
       भारतीय  वन सर्वेक्षण (Forest Survey Of India), 2017  के आकड़ों अनुशार, भारत के सर्वाधिक वन क्षेत्र वाले राज्य निम्नलिखित है -
            राज्य                  क्षेत्रफल (वर्ग किलोमीटर में )
   1.मध्य प्रदेश          77,414
   2.अरुणाचल प्रदेश      66.964
   3.छत्तीसगढ़          55,547
   4.ओड़िशा             51,345
   5.महाराष्ट्र            50,682

भारतीय  वन सर्वेक्षण (Forest Survey Of India), 2017  के आकड़ों अनुशार, भारत के सर्वाधिक वन प्रतिशत  वाले राज्य निम्नलिखित है -
           राज्य                 प्रतिशत क्षेत्र पर वन 
1.लक्षद्वीप              90.33

  • देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र (Forest cover area) का  25.11 % वन क्षेत्र पूर्वोत्तर ( North-East States) 7 राज्यों में हैं।   
  • भारत में 188 आदिवासी जिलों (Tribe Districts) में कुल वन क्षेत्र का 60.11 % पाया जाता है। 
  • देश में वनाच्छादित क्षेत्र के मामले में मध्य प्रदेश का प्रथम स्थान है। 
  • हाल के वर्षों में वन विकास में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। 
    वृक्षों के घनत्व के आधार पर वनों को 5 वर्गों में बाँटा जा सकता है -

    1. अत्यंत सघन वन (Very DenSe Forest)-  भारत में इस प्रकार के वन का विस्तार  कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.66 % भाग पर पाया जाता है , पूर्वोत्तर राज्य के असम  सिक्किम को छोड़कर शेष सभी राज्य  इस वर्ग में आते है।  इन क्षेत्रों में वनों का घनत्व 75 % से अधिक है। 
    2. सघन वन (Moderately Dense Forest)- भारत में इसप्रकार के वन कुल भौगोलिक क्षेत्र (Geographical Area) का 3 %  भाग पर पाए जाते है।  इसके अंतरगर्त हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और उत्तराखंड के पहाड़ी वनिये क्षेत्रों आते है। इन क्षेत्रों में वनों का घनत्व (Density) 62.99 %  है। 
    3. खुले वन (Open Forest) - ये वन कुल भौगोलिक क्षेत्र कें  7.12 %  भाग पर पाए जाते है।  इसके अंतरगर्त कर्नाटक , तमिलनाडु,केरल, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा एवं असम के वन क्षेत्र आते है। 
    4. झाड़ियां एवं अन्य वन (Bushes and Other Forest)- इस प्रकार के वन  मरुस्थलीय(Desert) भाग और अर्द्ध शुष्क  (Semi Arid) भागों में पाए जाते है। इसके अलावे ये वन पंजाब,हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल के मैदानी भागों में मिलते है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र के  8.68 %  भाग पर पाए जाते है।
    5. मैंग्रोव वन या तटीय वन (Mangroves or Coastal Forest)  -इस प्रकार के वन समुन्द्र तटीय राज्यों में फैला हुआ है, जिनमे प्रमुख रूप से  पश्चिम बंगाल के सुंदरवन, गुजरात एवं  अंडमान-निकोबार द्वीप समूह आते हैं। 
    प्रशासकीय दृष्टि से वनों का वर्गीकरण (classification of forest on the basis of administration)

    1. आरक्षित वन (Reserved Forest)
    2. रक्षित वन (Protected Forest)
    3. अवर्गीकृत वन (Unclassified Forest)  
    1. आरक्षित वन (Reserved Forest)- ऐसे वन जलवायु की दृष्टि (View of Climate) से महत्वपूर्ण होते हैं।  इन वनो में पशुचारण (Pasturing) और लकड़ियां काटने (Lumbering)  या अन्य वनोत्पाद प्राप्त की सख्त मनाही (Strictly Prohibited) होती हैं। ऐसे वन वन्य जीवों की सुरक्षा, बाढ़ की रोकथाम, भूमि-कटाव से रक्षा और मरुस्थल के प्रसार को रोकने में बहुत मत्वपूर्ण होते है। देश का 54 % वन आरक्षित वन (Reserved Forest) घोषित है। 
    2. रक्षित वन (Protected Forest)- ऐसे वनों में सिर्फ सरकार की ओर से लाइसेंस प्राप्त लोगो को पशुओं को चराने और सीमित रूप में लकड़ी काटने की सुविधा दी जाती है। परन्तु यहाँ पशुओं का शिकार करना सख्त मनाही होती है। वन विभाग के अनुशार कुल वन क्षेत्र का 29 % भाग रक्षित वन (Protected Forest) है। 
    3. अवर्गीकृत वन (Unclassified Forest)- ऐसे वनो में पशुओं को चराने और  लकड़ीयां  काटने के लिए सरकार की ओर से तो कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है,परन्तु उपयोगकर्ता  को सरकार को टैक्स देना पड़ता है। कुल वन क्षेत्र का 17 % अवर्गीकृत वन (Unclassified Forest) है। 

    वन सम्पदा तथा वन जीवों का ह्रास -
             भारत में वनों के ह्रास का एक बड़ा कारन कृषिगत भूमि का फैलाव है।  खास कर पूर्वोत्तर और मध्य भारत में जनजातियों द्वारा की जाने वाली स्थानांतरित कृषि या झूम कृषि।  इसप्रकार की कृषि को स्लैश और बार्न खेती (Slash and Burn Farming) भी कहते है क्योकि इसप्रकार की कृषि  पहले जंगलो को काटा जाता फिर उनमें आग लगा दी जाती है।
              बड़ी विकास योजनाओं से भी वनों को बहुत नुकसान पहुँचता है  1952 ईo  से नदी घाटी परियोजनाये  (River Valley Project) जैसे - सरदार सरोवर बांध, टिहरी बांध  आदि  के कारण 5000 वर्ग किमी o से अधिक वन क्षेत्रों का विनाश हो चुका है।
               खनन कार्य के कारण भी वनों का ह्रास  हो रहा है जैसे पश्चिम बंगाल के टाइगर रिज़र्व (Tiger Reserve) में डोलोमाइट के खनन के कारण टाइगर रिज़र्व खतरे में है
             पर्यावरण विद्धवानों के अनुशार संवर्द्धन (Enrichment ) यानि आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण वृक्षों का एकल रोपण करके दूसरी प्रजातियों के वृक्षों को खतरे में डालना। जैसे - हिमालय में चीड़ (Cheed), पाईन (Pine) के एकल रोपण से ओक(Oak) और रोडोडेंड्रॉन (Rhododendron) वनों का नुकशान और दक्षिण भारत में सागवान(Sagwan Tree) के एकल रोपण से अन्य वनों को नुकसान पहुँचना ।
            वन विभिन्न प्रकार के जीवों का निवास स्थल होता है वनों  के ह्रास से वहाँ रहने वाले  जीवों का आवास भी सिकुड़ जाता है। परिणामस्वरूप आवास की कमी, भोजन का  आभाव, जीवों का  शिकार आदि से वन जीवों का विनाश होने लगता  है। आज भारत के कई वन्य प्राणी या तो लुप्त हो गए है या विलुप्ती  कगार पर है। जैसे-भारतीय चीता (Panther), गिद्ध (Vulture), काला हिरण (Black Buck), चीतल (Chinkara), भेड़िया (Wolf), दलदली हिरण (Swamp Deer), नीलगाय (Nilgai ), बारहसिंगा (Antelope), गेंडा (Rhinos), गिर शेर (Gir Lion), मगर (Crocodile), सारंग (Bustard), सफ़ेद सारस (White crane), धूसर बगुला (Gray Heron), पर्वतीय बटेर (Mountain Quil), मोर (Peacock), हरा कछुआ (Green sea Turtle), लाल पण्डा (Red Pand)

    वन जीवों के अधिवास पर प्रतिकूल मानवीय प्रभाव के निम्न 3 प्रमुख कारण हैं -
    (i) प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण -
    (ii) प्रदुषण जनित समस्या
    (iii) आर्थिक लाभ -

    (i) प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण -नगरीकरण , औधोगिक विकास, बड़े बांध परियोजनाओं आदि के कारण जीवों के प्राकृतिक आवास जैसे जंगल, नदियाँ , तालाब , वेट लैंड , पहाड़ नष्ट हो रहे हैं। जीवों के प्राकृतिक आवास में मानवीय अतिक्रमण से इनका निवास स्थान छिन्न गया है जिसके कारण जीवों की सामान्य वृद्धि तथा प्रजनन क्षमता में कमी आई है।
    (ii) प्रदुषण जनित समस्या - वायु, जल एवं मृदा प्रदुषण के कारण वन एवं वन्य जीवों का जीवन चक्र गंभीर रूप से प्रभावित  होते है। इसके अलावे जीवों की संख्या में कमी का प्रमुख कारक पराबैंगनी किरणें, अम्ल-वर्षा और हरित गृह प्रभाव भी है।
    (iii) आर्थिक लाभ - जीव -जंतुओं की खरीद बिक्री एवं अवैध शिकार  के कारण। जैसे की चीन वन जीवों के काला बाजारी का मुख्य केंद्र है।