बुधवार, 29 जुलाई 2020

तारे एवं इसका जीवन चक्र (Stars and its Life cycle)

तारे (Star)-
        प्रकाशवान या प्रकाश उत्पन्न करने वाले खगोलीय पिंड को तारा कहते है | तारे मुख्यतः दो तत्व हाइड्रोजन (70%) और हीलियम (28%) के बने होते है |

कुछ महत्वपूर्ण तारे -
सूर्य (Sun) -

 यह एक गैसीय पिंड है, जिसमे हाइड्रोजन 71 %, हीलियम 26.5% एवं शेष अन्य तत्व पाये जाते है | सूर्य में लगातार ऊष्मा, उर्जा और प्रकाश बरक़रार रहने का मुख्यः कारण इसके अन्दर चलने वाली नाभिकीय संलयन अभिक्रिया है | 
सूर्य की बाहरी सतह का तापमान 6000 डीग्री सेल्सियस है | जबकि आंतरिक भाग का तापमान 15 लाख डीग्री सेल्सियस है | अत्यधिक उच्च तापमान के कारण इसमें पदार्थ गैस और प्लाज्मा की अवस्था में पाये जाते है | इस ऊर्जा को पृथ्वी की सतह तक पहुँचने में 8 मिनट 20 सेकंड का समय लगता है | सूर्य अपने अक्ष (Axis) पर 25 दिन में एक बार पूरा घूम जाता है |
सूर्य दुग्धमेखला आकाशगंगा (Milkyway Galaxy) के केंद्र की परिक्रमा 250 किमी. प्रति सेकेण्ड की गति से परिक्रमा कर रहा है | यह करीबन 25 करोड़ वर्ष में परिक्रमा पूरा कर लेता है | इस पुरे अवधि को ब्रहमांड वर्ष (Cosmic Year) कहते है |


प्रोक्सिमा सेंचुरी (Proxima Centuari)-
          यह पृथ्वी का सबसे नजदीकी तारा सूर्य है | जो की सूर्य से 4.3 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है |



साइरस (Sirius) या Dog star-
             पृथ्वी से लगभग 8.6 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है | जो सूर्य से दूसरा निकटम तारा है | यह सूर्य से 20 गुना अधिक चमकीला तारा है जिसके कारण यह रात में सर्वाधिक चमकीला तारा के रूप में दिखाई देता है |




ध्रुव तारा (Pole star or North star)-
             पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के ठीक ऊपर शिरोबिंदु (Zenith) पर स्थित है जिसके कारण यह अन्य तारों की तरह आकाश में स्थान बदलते नही दिखाई देता है |





क्वासर्स (Quasars)-
              Quasars, Quasi-stellar Radio source का संक्षिप्त नाम है | यह ब्रह्मांड में दिखाई देने वाला सबसे चमकीला खगोलीय पिंड है, जिससे अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित होता रहता है | यह हमारे आकाशगंगा से करीबन 100 गुना ज्यादा चमकीला है | ये गैलेक्सी के चारो ओर छाये रहते है जिससे रेडियो तरंगे, X - तरंगे और प्रकाश तरंगे उत्सर्जित होती रहती है | वर्ष की दुरी पर स्थित है | इनसे आने वाले रेडियो तरंगो से इनके विषय में जानकारी मिलती है | इनको मात्र रेडियो टेलिस्कोप से ही पहचाना जा सकता है | साधारण ऑप्टिकल टेलिस्कोप से ये चमकीला तारा के रूप में दिखाई देता है |



तारों का जीवन चक्र (The Star Life Cycle)-
         आकाशगंगा के घूर्णन से ब्रह्मांड में उपस्थित गैसों के बादल प्रभावित होते है | इसके फलस्वरूप आकाशगंगा की तीसरी भुजा में हाइड्रोजन के बादल बनने प्रारंभ होते है, जिन्हें Stellar Nebula कहते है | 
जब Stellar Nebula काफी बड़ा हो जाता है तो गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से गैसीय पिंड सिकुड़ने लगता है, जिसे आदि तारा (Proto Star) कहा जाता है | Proto star का केंद्र अत्यधिक सघन होता है इसलिए इसे भ्रूण तारा (Embryo Star) भी कहा जाता है |
Proto star के सिकुड़ने पर गैस के बादलों में परमाणुओं की परस्पर टक्करों की संख्या बढ़ जाती है | परिणामस्वरूप हाइड्रोजन का हीलियम में बदलने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है | इससे असीमित मात्रा में विकरण उर्जा मुक्त होती है एवं इसके अन्दर का ताप व दाब अत्यंत बढ़ जाता है | इस अवस्था में यह तारा बन जाता है |

Stellar Nebula
आकाशगंगा की तीसरी भुजा में हाइड्रोजन के बादल बनने प्रारंभ होते है,
आदि तारा (Proto Star) या भ्रूण तारा (Embryo Star)
Stellar Nebula के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से गैसीय पिंड सिकुड़ने से आदि तारा (Proto Star) का निर्माण होता है
तारा
Proto star के सिकुड़ने पर गैस के बादलों में परमाणुओं की परस्पर टक्करों की संख्या बढ़ जाती है | परिणामस्वरूप हाइड्रोजन का हीलियम में बदलने से काफी मात्रा में उर्जा मुक्त होती है और तारे का जन्म होता है |
लाल दानव (Red Giant)
जब तारा धीरे-धीरे ठंडा होकर लाल रंग का दिखने लगता है | रक्त दानव की स्थिति में पहुँचने पर तारे का अंत कैसा होगा ? यह उसके प्रारंभिक द्रव्यमान पर निर्भर करता है |

तारों का रंग, तापमान एवं आयु -
           तारो का रंग उसके तापमान का सूचक होता है ताप की सहायता से किसी तारे की आयु का अनुमान भी लगाया जा सकता है | अतः तारों को निम्न रंगों में बांटा गया है –

विभिन्न रंगों के तारों का ताप
क्रम.
तारों का रंग
तापमान (केल्विन में )
1
नीला
50,000-28,000
2
नीला-सफ़ेद
28,000-10,000
3
सफेद
10,000-7,500
4
सफ़ेद-पीला
7,500-6000
5
पीला
6000-4900
6
नारंगी
4900-3500
7
लाल
3500-2000

तारों की मृत्यु –
           जब तारे के कोर में ईंधन समाप्त होने लगता है तो वो धीरे-धीरे ठंडा होकर लाल रंग का दिखाई देने लगता है तो ऐसे तारों को लाल दानव तारा या रक्त दानव (Red Giants) कहा जाता है | मृत होते हुए तारे में अन्तः विस्फोट होता है, जिससे कुछ देर के लिए काफी तीव्र प्रकाश उत्पन्न होता है | इसे Super Nova Explosion कहते है | विस्फोट के पश्चात् छोटे तारे का अत्यधिक सघन कोर का अवशिष्ट भाग White Dwarf कहलाता है | बड़े तारे में विस्फोट के पश्चात् बचा अत्यधिक सघन कोर का अवशिष्ट भाग Neutron Star कहलाता है |
Red Giant की स्थिति में पहुँचने पर तारे का भविष्य इसके प्रारंभिक द्रव्यमान पर निर्भर करता है की सुपरनोवा विस्फोट के बाद श्वेत वामन (White Dwarf) बनेगा या न्यूट्रॉन तारा (Neutron star या फिर कृष्ण विवर (Black Hole) |

चन्द्रशेखर सीमा (Chandrashekhar Limit)-
          भारतीय मूल के अमेरिकी भौतिकविद सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर ने वर्ष 1930 ई. में 1.44 सौर द्रव्यमान (Mass of Solar) की वह सीमा निश्चित की थी, जिसके अन्दर के तारे श्वेत वामन (White Dwarf) बनते है और उसके ऊपर के अवशेष वाले तारे न्यूट्रॉन तारा (Neutron star या कृष्ण विवर (Black Hole) बनते है |

तारों का वर्गीकरण –
(1). सूर्य सदृश छोटे तारे
(2). मध्यम आकार के तारे
(3). बड़े आकार के तारे
इस आकार के तारे जब Red Giant की अवस्था में पहुँचते है तो सुपरनोवा विस्फोट के बाद यदि अवशेष सौर द्रव्यमान के 1.44 गुने की सीमा के अन्दर होगा तो तारा श्वेत वामन (White Dwarf) बनेगा और अंत में कृष्ण वामन (Black Dwarf) के रूप में मृत्यु की अवस्था प्राप्त करेगा |
इस आकार के तारे supar Red Giant अवस्था के पश्चात् पहुँचने के बाद जब सुपरनोवा विस्फोट के बाद यदि अवशेष सौर द्रव्यमान के 1.44 के तीन गुने के बराबर बचता है तो ये तारा न्यूट्रॉन तारा (Neutron star) में परिवर्तित हो जाता है |
इस आकार के तारे सुपरनोवा विस्फोट के बाद 1.44 सौर द्रव्यमान (Mass of Solar) से 3 गुने से भी अधिक मात्रा में अवशेष बचता है | जो कृष्ण विवर (Black Hole) में परिवर्तित हो जाता है |

श्वेत वामन (White Dwarf)-
      यह एक जीवाश्म तारा (Fossil star) है जिसके बाह्य परत को Smoke ring कहा जाता है |


सुपरनोवा विस्फोट (Supernova Explosion)-
 जब कोई तारा रक्त दानव  (Red Giant) की अवस्था में पहुँच जाता है तो उसका क्रोड अत्यधिक गुरुत्व के कारण  सिकुड़ता जाता है परिणामस्वरूप तापमान दाब में वृद्धि से क्रोड का हीलियम, कार्बन में और कार्बन लोहे जैसे भारी धातुओं में परिवर्तित हो जाता है | अंत में तारे का केंद्र लोहे से युक्त हो जाता है, जिसके कारण केंद्र में नाभिकीय संलयन की क्रिया रुक जाती है | तारे की मध्यवर्ती परत में गुरुत्वाकर्षण बल के कारण तारे के केंद्र में तीव्र विस्फोट हटा है जिसके कारण तारे का ऊपरी परत नष्ट हो जाता है | इस विस्फोट को ही सुपरनोवा विस्फोट (Supernova Explosion) कहते है | 



न्यूट्रॉन तारा (Neutron star)-
 सुपरनोवा विस्फोट के पश्चात् तारे का बचा हुआ केन्द्रीय भाग जो अत्यधिक घनत्व वाला और मात्र कुछ मील व्यास का ही होता है उसी अवशेष को न्यूट्रॉन तारा (Neutron star) कहा जाता है | यह बचा हुआ भाग अपने अक्ष पर प्रति सेकेण्ड  30 बार घूर्णन करता है तथा तीव्र रेडियो तरंगे उत्सर्जित करता है | न्यूट्रॉन तारा को पल्सर  (Pulsar) भी कहा जाता है |  



कृष्ण विवर (Black Hole)-
       न्यूट्रॉन तारे का अपरिमित द्रव्यमान अंततः एक ही बिंदु पर संकेंद्रित होने लगता है तब संकुचित होते तारे अदृश्य होते चले जाते है, इसी को कृष्ण विवर (Black Hole) कहते है |
      यह अत्यधिक घनत्व और गुरुत्वाकर्षण वाला क्षेत्र में बदल जाता है और अपने आस-पास के सभी चीजों को यहाँ तक की प्रकाश को निगलने लगता है | इसमें वस्तुएँ गिर तो जाती है पर बाहर कुछ भी नही आता है | इसे Black Hole इसलिए कहते है क्योंकि यह अपने ऊपर पड़ने वाले सारे प्रकाश  को अवशोषित तो कर लेता है परन्तु कुछ भी परावर्तित नही होता है |
      इसके होने की सबसे पहले पुष्टि भारतीय मूल के अमेरिकी भौतिकविद सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर ने की थी | इस योगदान के लीय इन्हें वर्ष 1983 में भौतिक का नोबेल पुरस्कार मिला था |


खगोलीय इकाई (Astronomical Unit)- 
         यह लम्बाई मापने की इकाई है  जिसका मान 14.96 करोड़  किमी. होता है यानि सूर्य एवं पृथ्वी के बीच की औसत दूरी |  

  

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