सूर्य (Sun)-
यह सौरमंडल का सबसे बड़ा सदस्य और इस परिवार का मुखिया है | यह एक गसीय पिंड है, जिसमे हाइड्रोजन 71 %, हीलियम 26.5% एवं शेष अन्य तत्व पाये जाते है |
सूर्य में लगातार ऊष्मा, उर्जा और प्रकाश बरक़रार रहने का मुख्यः कारण इसके अन्दर चलने वाली नाभिकीय संलयन अभिक्रिया है | इस अभिक्रिया में दो छोटे परमाणु के नाभिक आपस में मिलकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते है |
सूर्य की बाहरी सतह का तापमान 6000 डीग्री सेल्सियस है | जबकि आंतरिक भाग का तापमान 15 लाख डीग्री सेल्सियस है | अत्यधिक उच्च तापमान के कारण इसमें पदार्थ गैस और प्लाज्मा की अवस्था में पाये जाते है | इस ऊर्जा को पृथ्वी की सतह तक पहुँचने में 8 मिनट 20 सेकंड का समय लगता है |
सूर्य अपने अक्ष (Axis) पर 25 दिन में एक बार पूरा घूम जाता है | सूर्य दुग्धमेखला आकाशगंगा (Milkyway Galaxy) के केंद्र की परिक्रमा 250 किमी. प्रति सेकेण्ड की गति से परिक्रमा कर रहा है | यह करीबन 25 करोड़ वर्ष में परिक्रमा पूरा कर लेता है | इस पुरे अवधि को ब्रहमांड वर्ष (Cosmic Year) कहते है |
सूर्य की आंतरिक संरचना-
सूर्य की भीतर से बाहर की ओर क्रमशः इस प्रकार है –
Core –
तारे के इस भाग में अत्यधिक तापमान होता है जिसके कारण हाइड्रोजन के परमाणु आपस में संलयित होकर हीलियम का निर्माण करते है |
तारे के इस भाग में अत्यधिक तापमान होता है जिसके कारण हाइड्रोजन के परमाणु आपस में संलयित होकर हीलियम का निर्माण करते है |
सूर्य के वायुमंडल को इसप्रकार बाँट सकते है –
1.प्रकाशमंडल (Photosphere)-
यह सूर्य की चमकीला दिखाई देने वाली बाहरी सतह है जो हमें आँखों से दिखाई देता है | यह ज्यादातर विकिकरण (Radiation) मुक्त करता रहता है | इसका तापमान लगभग 6000 डीग्री सेल्सियस है |
यह सूर्य की चमकीला दिखाई देने वाली बाहरी सतह है जो हमें आँखों से दिखाई देता है | यह ज्यादातर विकिकरण (Radiation) मुक्त करता रहता है | इसका तापमान लगभग 6000 डीग्री सेल्सियस है |
2.वर्णमंडल (Chromosphere)-
यह फोटोस्फीयर के ऊपर पाया जाता यह गसों का जलता हुआ पतला परत है | सूर्य का वायुमंडल जो प्रकाश का अवशोषण कर लेता है |
यह फोटोस्फीयर के ऊपर पाया जाता यह गसों का जलता हुआ पतला परत है | सूर्य का वायुमंडल जो प्रकाश का अवशोषण कर लेता है |
3.कोरोना (Corona)-
यह तापमंडल की सबसे ऊपरी परत है | जो लाखों किलो. की ऊँचाई तक अंतरिक्ष में फैला होता है इसे प्रायः पूर्ण सूर्यग्रहण के समय देखा जा सकता है | सूर्य ग्रहण के समय बनने वाले इस वलय को Diamond Ring कहा जाता है |
यह तापमंडल की सबसे ऊपरी परत है | जो लाखों किलो. की ऊँचाई तक अंतरिक्ष में फैला होता है इसे प्रायः पूर्ण सूर्यग्रहण के समय देखा जा सकता है | सूर्य ग्रहण के समय बनने वाले इस वलय को Diamond Ring कहा जाता है |
सौर ज्वाला (Solar Flames)-
सूर्य के प्रकाशमंडल (Photosphere) से आकस्मिक रूप से उत्पन्न होने वाली तीव्र ज्वाला, जो अचानक भड़क उठती है और लगभग 700 किमी. प्रति सेकंड की गति तक तीव्र होकर कोरोना को पार करके अन्तरिक्ष में चली जाती है, इसे ही सौर ज्वाला के नाम से जाना जाता है |
सूर्य के प्रकाशमंडल (Photosphere) से आकस्मिक रूप से उत्पन्न होने वाली तीव्र ज्वाला, जो अचानक भड़क उठती है और लगभग 700 किमी. प्रति सेकंड की गति तक तीव्र होकर कोरोना को पार करके अन्तरिक्ष में चली जाती है, इसे ही सौर ज्वाला के नाम से जाना जाता है |
Solar Prominence –
यह सूर्य की सतह पर बनने वाला अर्ध चंद्राकार गैस की लपटे है यह अंतरिक्ष में करीबन 100 मील से लेकर 1000 मील तक उठे होते है |
सौर पवन (Solar wind)-
सूर्य के आवेशित परमाणविक कणों का सतत प्रवाह जिसमें प्रोटोन, इलेक्ट्रान तथा कुछ भारी तत्वों के नाभिक होते है | जो अन्तरिक्ष में लगभग 480 किमी. प्रति सेकंड की गति से चलते है | सौर पवन के कण पृथ्वी तक लगभग 3.5 दिन में पहुँचते हैं | सूर्य के धब्बों के सक्रिय होने पर यह पवन अधिक तीव्र हो जाती है | ये पवनें ऊपरी वायुमंडल की गैसों को आयानित (Ionize) कर देती है जिससे ध्रुवीय प्रकाश की उत्पत्ति होती है जैसे उत्तरी ध्रुव पर Aurora Borealis और दक्षिणी ध्रुव पर Aurora Australis |
सूर्य के आवेशित परमाणविक कणों का सतत प्रवाह जिसमें प्रोटोन, इलेक्ट्रान तथा कुछ भारी तत्वों के नाभिक होते है | जो अन्तरिक्ष में लगभग 480 किमी. प्रति सेकंड की गति से चलते है | सौर पवन के कण पृथ्वी तक लगभग 3.5 दिन में पहुँचते हैं | सूर्य के धब्बों के सक्रिय होने पर यह पवन अधिक तीव्र हो जाती है | ये पवनें ऊपरी वायुमंडल की गैसों को आयानित (Ionize) कर देती है जिससे ध्रुवीय प्रकाश की उत्पत्ति होती है जैसे उत्तरी ध्रुव पर Aurora Borealis और दक्षिणी ध्रुव पर Aurora Australis |
सौर पवन के प्रभाव से पुच्छल तारे की पूँछ सूर्य के विपरीत दिशा में होती है |
सौर कलंक (Sun Spot)-
सौर ज्वाला जहाँ से निकलती है वहां काले धब्बे दिखाई पड़ने लगते है जिन्हें सौर कलंक (Sun Spot) कहा जाता है | इन धब्बों का तापमान सूर्य की सतह के तापमान (6000 डिग्री सेल्सियस) से काफी कम (लगभग 1500 डिग्री सेल्सियस) होता है | ये अस्थाई धब्बे होते है जो बनते-बिगड़ते रहते हैं | सौर कलंक सामान्यतः 13 दिन तक उत्तम किस्म के दूरबीन से देखे जा सकते है | इनकी संख्या चक्रीय रूप में घटती-बढती रहती है जबकि औसत रूप से एक चक्र लगभग 11 वर्ष में पूरा होता है | अतः सौर कलंकों की अधिकतम स्थिति प्रति 11 वर्ष बाद आती है
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