गुरुवार, 30 जुलाई 2020

भारत :संसाधन एवं उपयोग


             प्रकृति में पाये जाने वाले वे सारे प्रदार्थ जो मानव जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ  सुख-सुविधा प्रदान  करते  हों , संसाधन (Resource) कहलाते हैं। जैसे - कुर्सी , पंखा, सड़क , पर्वत , नदी इत्यादी

             मानव भी एक संसाधन हैं क्योंकि मानव अपने बुद्धि एवं बल से अनेक कार्य कर पाने में सक्षम है जैसे- जापान एक ऐसा देश है जहां खनिज संसाधन की कमी है परन्तु यहाँ के लोग अपनी बुद्धि एवं परिश्रम के बल पर विश्व के विकशित देशों की श्रेणियों में गिना जाता है।
             कोई  वस्तु तब तक संसाधन नहीं होता जब तक की  वह मानव उपयोगी न  हो  जैसे- नदी तब तक संसाधन नहीं   होगी जब तक की उसका उपयोग नाव संचालन  के लिए , पीने युक्त जल के रूप में , बिजली उत्पन्न करने इत्यादि में न हो।
             अर्थशास्त्री  जिम्मरमेन (Zimmermann) ने ठीक ही कहा है - "संसाधन होते नहीं, बनते हैं। (Resources are not, they become). "
             वर्तमान परिवेश में सेवा को भी संसाधन माना गया हैं। किसी गायक की गायकी ,चित्रकार की चित्रकारी साहित्कार का साहित्य और कवी की कविता भी संसाधन कहलाएगी जब इसका उपयोग व्यक्ति विशेष धनोपार्जन (Earn Money) में करे।
             संसाधन किसी भी देश का आर्थिक - सामाजिक मेरुदंड  (Economic -social Backbone) होता है।

संसाधनों  का वर्गीकरण (classification of Resources)
संसाधनों  का वर्गीकरण निम्नलिखित आधार पर किया जाता है -
A  उपलब्धता के आधार पर
B उत्पति के आधार पर 
C पुनः प्राप्ति के आधार पर
D स्वामित्व के आधार पर अन्तराष्र्टीय
E विकास की स्थिति के आधार पर

A  उपलब्धता के आधार पर
(i ) प्राकृतिक संसाधन (Natural Resources) -
              प्रकृति द्वारा प्रदत  वे सारे प्रदार्थ जैसे पर्वत , पठार , नदी जलवायु इत्यादि प्राकृतिक संसाधन हैं। 

(ii) मानवकृत 
            मानव जब अपने बुद्धि एवं तकनीक से प्राकृतिक संसाधन को परिवर्तित करके भवन, सड़के , रेल लाइने , बिजली बल्ब , कुर्सी , कंप्यूटर इत्यादि में बदल देता है तो यह मानवकृत संसाधन कहलाता है। 

B उत्पति के आधार पर (Based on Origin)
(i) जैविक संसाधन (Biotic Resources) -
          ऐसे संसाधन जिनकी प्राप्ति जीवो से होती है जैसे-मछलियाँ , भेड़ से ऊन , मधुमक्खी से शहद , मुर्गी और बतक से अण्डे , बकरी से मांस , रेशम के कीड़े से रेशम, पेड़-पौधों  से फल एवं फूल  इत्यादि 
(ii) 
            वैसे संसाधन जो निर्जीव वस्तुओ से प्राप्त होता है जैसे -चट्टानें , धातु , खनिज , मिट्टी , पर्वत इत्यादि 

C पुनः प्राप्ति के आधार पर
(i) नवीकरणीय संसाधन (Renewable Resources) -
          वैसे संसाधन जिन्हें भौतिक,रासायनिक या यांत्रिक प्रक्रिया द्वारा पुनः प्राप्त किया जा सकता है।  जैसे- सौर ऊर्जा , पवन ऊर्जा , जल विधुत , वन एवं वन्य प्राणी  इत्यादि 


(ii) अनवीकरणीय संसाधन (Non-Renewable Resources)-
         कुछ ऐसे संसाधन है जिनके एक बार नष्ट होने के बाद पुनः प्राप्त होने में लाखो वर्ष लग सकते है अतः इनका पुनः चक्रिये नहीं किया जा सकता है जैसे - कोयला , पेट्रोलियम  इत्यादि 


D स्वामित्व के आधार पर (Based on Ownership)
 संसाधन (Individual Resources)
           वैसे संसाधन जो किसी खास खास व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र में हो जैसे - घर, जायदाद, कुआँ , बगीचा , तालाब इत्यादि 
(ii) 
            वैसे संसाधन जो किसी खास समुदाय के अधीन में हो , जिसपे पुरे समुदाय का अधिकार होता है।  जैसे- गाँवों का चारण -भूमि (Village Pasture land), श्मशान (Burial ground) , मंदिर -मस्जिद ,सामुदायिक भवन , विधालय , खेल का मैदान(Play ground)   इत्यादि 
(iii) 
            क़ानूनी तौर पर किसी राज्य या देश की सीमा के अंदर सभी प्रकार के संसाधनों राष्ट्रीय है। उस संसाधन पर राज्य या  देश का स्वामित्व होता है सरकार व्यक्तिगत संसाधनों का अधिग्रहण, आम जनता के हित के लिए कर सकती  हैं। जैसे- सड़के , रेल , सरकारी अस्पताल, पर्यटन स्थल  इत्यादि 
नोट - सागर तटों के पास 
(iv ) 
          ऐसे संसाधनों का नियंत्रण  संस्था करती अन्तराष्र्टीयहै।  तट रेखा से 200 KM की दूरी छोड़कर खुले संसाधन है। 

E विकास की स्थिति के आधार पर
(i) संभाव्य संसाधन
        ऐसे संसाधन जो किसी क्षेत्र विशेष में मौजूद होते हैं ,जिसे उपयोग में लाये जाने की संभावना रहती है। परन्तु उचित तकनीक के अभाव में अभी तक उपयोग नहीं हो पाया है। जैसे हिमालय क्षेत्र का खनिज, जिनका उत्खनन अधिक गहराई में होने के कारन दुर्गम एवं महँगा है। उसी प्रकार  एवं  गुजरात में पवन और सौर-ऊर्जा की असीम सम्भावनायें हैं। 
(ii) विकसित या ज्ञात 
           ऐसे संसाधन जिनका सर्वेक्षणोपरांत उपयोग हेतु मात्रा एवं गुणवत्ता का निर्धारण हो चूका है।  
(iii) भंडारित 
         ऐसे संसाधन पर्यावरण में उपलब्ध होते है तथा मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम है।  उपयोग हेतु उपयुक्त तकनीक के अभाव में इन्हे केवल भंडारित संसाधन के रूप में देखा जाता है।  जैसे- जल (H2O), हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन का योगिक है, जिसमें ऊर्जा उत्पादन की असीम क्षमता है लेकिन सही तकनीक के अभाव में ऐसे संसाधनों का उपयोग नहीं कर प् रहे हैं। 
(iv) संचित 
       वैसे संसाधन जिनका उपलब्ध तकनीक के आधार पर प्रयोग के लाया तो जा सकता है परन्तु तत्काल उनका उपयोग प्रारम्भ नहीं हुआ है।  यह भविष्य की पूँजी है। 

संसाधन नियोजन 
        संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग ही संसाधन नियोजन है।
संसाधनों का संरक्षण (Conservation Of Resources )
        संसाधनों का नियोजित एवं विवेकपूर्ण उपयोग ही संरक्षण कहलाता है।
महात्मा गाँधी ने संसाधन संरक्षण के बारे में कहा की - "हमारे पास पेट भरने के लिए बहुत कुछ है , लेकिन पेटी भरने के लिए नहीं। "

मेधा पाटेकर का नर्मदा बचाओ अभियान 
सुन्दर लाल बहुगुणा का चिपको आंदोलन 
संदीप पांडेय द्वारा वर्षा-जल संचय कर कृषि भूमि का विस्तार 
ये सभी कार्य संसाधन संरक्षण के दिशा में सहरानीय कदम थे।

नर्मदा बचाओ आंदोलन (Narmada Bachao Movement) -
           इस आंदोलन का मुख्य वजह नर्मदा नदी पर बनी 
इस आंदोलन की नेता 

चिपको आंदोलन (Chipko Movement) -
        इस  की शुरुआत इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य जिसमे वे लोग सफल भी रही । यह पर्यावरणीय विनाश के ख़िलाफ़ शांत अहिंसक विरोध प्रदर्शन था। इस आंदोलन के नेतृत्वकर्ता  पर्यावरण प्रेमी 





संसाधन के संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक सम्मेलन हुए हैं।
सर्वप्रथम 1968  ईo  में Club of Rome ने इसकी वकालत की थी.
1974   ईo में शुमशेर की पुस्तक Small is Beautiful में इससे सम्बंधित गाँधीजी के विचार प्रकाशित हुई।
प्रथम पृथ्वी सम्मलेन (First Earth Summit) -
इसका आयोजन 1992 ईo को रियो-डी -जेनेरो में किया गया था। इस सम्मलेन में ग्लोबल-वार्मिंग, वन-संरक्षण, जैव-विविधता, कार्यक्रम- 21 (Agenda-21) एवं रियो घोषणा-पत्र पर समझौता किये गए।


द्वितीय  पृथ्वी सम्मलेन (Second Earth Summit)-
इसका आयोजन 1997  ईo को न्यूयोर्क  में प्रथम सम्मलेन के मूल्यांकन के लिए 5 वर्ष बाद आयोजन किया गया। इससे प्लस-5  सम्मलेन भी कहा जाता है।

तृतीय  पृथ्वी सम्मलेन (Third Earth Summit)-
इसका आयोजन 2002 ईo को जोहांसबर्ग  में किया गया ।

क्योटो सम्मलेन-
1997 में पृथ्वी को ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए जापान के क्योटो में सम्मलेन आयोजित हुआ।  इसमें 6 गैसों (Co2 , मीथेन, N2 o , HFC क्लोरो फ्लूरो कार्बन,सल्फर हेक्सा क्लोराइड ) को ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेवार मानते हुआ इसके उपयोग में कटौती पर सहमति बनी।  इस सम्मलेन को विश्व पर्यावरण सम्मलेन या ग्रीन हाउस सम्मलेन के नाम से भी जाना जाता है।


सतत विकास (Sustainable Development)
        पर्यावरण को बिना क्षति पहुँचाये ,भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए , वर्तमान विकास को कायम रखना सतत विकास कहलाता है। इससे वर्त्तमान विकास के साथ भविष्य भी सुरक्षित रह सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें