गुरुवार, 30 जुलाई 2020

संतुलन का सिध्दांत

आइसोस्टेसी (Isostasy)  शब्द ग्रीक भाषा के ‘Isostasy is the corresponding state of balance between extensive blocks of the earth’s crust which rise to different levels and appear at the surface as mountain ranges, plateaus, plains or ocean floors.) 

             Dutton के अनुशार ऊँचे भू-खंड (जैसे-पर्वत, पठार इत्यादि) कम घनत्व वाली चट्टानों से और नीचले
       अधोस्तर (Sub-stratum) के सीमा (Sima) पर सियाल (Sial) के तैरने का सिध्दांत सबसे पहले ब्रिटेन के सर जार्ज एअरी (Sir George Airy) ने 1855 ईo रखा था |

संतुलन के सिध्दांत की खोज of the Doctrine of Isostasy) –
        संतुलन के सिध्दांत अचानक से भूगोलवेत्ताओं के दिमाग तब आया जब सन 1859 ईo में सिन्धु-गंगा के मैदान में अक्षांशों के निर्धारण हेतू भू-सर्वेक्षण (Geodetic Survey) हो रहा था | उस समय
परन्तु इस समस्या के समाधान हेतू जब प्राट महोदय (Sir Pratt) को कहा गया तो उन्होंने एक अलग विचार दिया| उन्होंने ने बताया की महाद्वीपों की तरह हिमालय भी सियाल का बना है अतः इसका घनत्व भी 2.75 ही होना चाहिय | इस आधार पर जब उन्होंने गणना किया तो यह अंतर 5.236’’ के बजाय

आगे चलकर एयरी तथा प्राट के व्याख्याओं ने एक दूसरी ही समस्या को जन्म दिया –
“आखिर हिमालय की कम आकर्षण शक्ति का वास्तविक कारण क्या है ?”
इस समस्या के समाधान के लिए कई सुझाव दिए गए –

1 हिमालय अन्दर से खोखला होगा या अन्दर चट्टानें बुलबुले के रूप में होगे इस कारण पर्वत का भार तथा घनत्व कम होगा |

2 हिमालय के ऊपर अत्यधिक पदार्थ का संतुलन उसके नीचे कम घनत्व वाले पदार्थ से होता है इसकारण समस्त भार और आकर्षण शक्ति कम होगा |

3 हिमालय की चट्टानों का घनत्व कम होगा जिस कारण पर्वत का भार तथा आकर्षण शक्ति कम होगी |

4 ऐसा माना गया की पृथ्वी के अन्दर एक ऐसा तल होता है जिसके नीचे घनत्व में अंतर नहीं होता है | केवल इस तल के ऊपर ही अंतर पाया जाता है | इस आधार पर यह मान लिया गया की जो जितना बड़ा भाग होगा घनत्व उतना ही कम होगा और जो जितना छोटा भाग होगा, वो उतना ही अधिक घनत्व वाला होगा |

सर जार्ज एयरी का मत (Airy’s Views)
      सर एयरी ने सर्वप्रथम यह सुझाव दिया की पृथ्वी की भू-पपड़ी (Earth Crust) अधिक घनत्व वाले 

       इस प्रकार एयरी ने यह बताया की हिमालय अपनी वास्तविक आकर्षण शक्ति का प्रयोग कर् रहा है क्योंकि इसके हल्के पदार्थ वाली एक लम्बी जड़ (root) है जो की सबस्ट्रैटम में है तथा यह हल्के पदार्थ वाली एक लम्बी जड़ ऊपर के पदार्थ को संतुलित कर देती है | इन आधारों पर एयरी ने अपना एक मत दिया –

      एयरी ने पुनः बताया कि density with varying thikness) | इस बात को प्रमाणित करने के लिए एयरी ने लोहे के विभिन्न आकार तथा लम्बाई वाले टुकड़े लिए तथा उन्हें पारे से भरी बेसिन में डुबो दिया | ये टुकड़े अपने आकार के अनुसार भिन्न भिन्न गहराई तक डूबते गये | इसी बात को लकड़ी के टुकड़ों को जल में डुबो कर भी प्रमाणित किया जा सकता है | 

सारांश
      एयरी का यह मानना है की सियाल सीमा के ऊपर तैर रहा है | उनके अनुसार विभिन्न भू-खंड या स्तंभों का घनत्व बराबर है एवं उनकी गहराई अलग – अलग है | स्थल खण्डों की तुलना पानी में तैरते हुआ लकड़ी के टुकड़ों या बर्फ के टुकड़ों से की जा सकती है | अधिक ऊँचे उठे भाग अधिक गहराई तक डूबे रहते है, जबकि कम ऊँचे भाग अधःस्तर (Substratum) में कम गहराई तक डूबे होते है | अतः एयरी का यह मानना है की पर्वतों की जड़ें होती है | होम्स ने एयरी की
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प्राट का मत (Views of Archdeacon Pratt)
      प्राट महोदय ने कल्याण तथा कल्याणपुर के लिए किये गए अक्षांशीय माप के अंतर (5.236”) को अपनी गणना के अनुसार निकाले गए अंतर (15.885”) से बहुत कम बतलाया था | उनके अनुसार हिमालय का वास्तविक आकर्षण अनुमानित आकर्षण से इसलिए कम है की पर्वत काफी हल्के पदार्थो के बने है | इस आधार पर पहाड़ों की चट्टानों का घनत्व पठारों से कम, पठारों का मैदानों से कम तथा मैदानों का घनत्व समुन्द्र-तल की चट्टानों से कम है | अर्थात प्राट के अनुसार ऊँचाई और घनत्व में उल्टा अनुपात होता है | Bigger the column lesser the density, smaller the column, greater the density) | प्राट के अनुसार एक Uniform depth with varying density”  का प्रतिपादन किया। 

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