पृथ्वी की उत्पत्ति आज से करीबन 5 अरब वर्ष पूर्व हुई | अब यह चाहे सूर्य से उत्पन्न हुई हो या ब्रह्मांडीय धूलकणों से परन्तु इसकी संरचना में प्रारंभ से ही गैस और जलवाष्प की मात्रा विधमान रही है | पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में आज हम जो भी जानते है वे सब के सब अप्रत्यक्ष प्रमाणों पर आधारित है, क्योंकि मनुष्य द्वारा खदानों तथा पेट्रोलियम की खोज में 5-6 किलोमीटर से अधिक गहरे
पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में जानने के कई स्त्रोत है जैसे घनत्व, दबाब, तापमान, उल्का पिंड इत्यादि। परन्तु इनमें सबसे अधिक जानकारी भू-भौतिक विज्ञान (Geophysics) तथा भूकंप विज्ञान (Seismology) से प्राप्त होता है | भूकंप से पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे कई महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होते है जब भूकंप पृथ्वी की गहराई में उत्पन्न होती है तो यह कई तरंगो के रूप में बाहर आती है | इन तरंगो को मुख्यतः 2 भागों में बांटा जाता है
(1). शरीर तरंग (Body waves) - इन तरंगो के अंतर्गत P तरंग और S तरंग को रखा जाता है ये तरंगे पृथ्वी के आंतरिक भागों से धरातल तक अवतल (Concave) मार्ग का अनुसरण करके पहुँचती है |
(A) P तरंगे (P – waves ) - ये प्राथमिक तरंगे (Primary or Preliminary waves) है | इनका संचरण
तरंगे (S – waves) - ये अनुप्रस्थ तरंगेदितीयक तरंगे (Secondary waves) भी कहा जाता है | S तरंगों की सबसे बड़ा गुण यह है की यह सिर्फ ठोस माध्यम से ही होकर गुजर सकती है | तरल में यह बिलकुल गायब हो जाती है।
(2) पृष्ठीय तरंगे (Surface waves) - इन तरंगो के अंतर्गत रैले तरंग (Rayleigh waves) और लव तरंग (Love waves) को रखा जाता है |
(A) रैले तरंग (Rayleigh waves)- इस तरंग
(B) लव तरंग (Love waves)- इस तरंग
1 भू-पर्पटी (Earth Crust)
2 मैन्टल (Mantle)
3 कोड (Core)
(1) भू-पर्पटी (Earth Crust)- यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी एवं पतली परत है, जिसकी औसत मोटाई 33 कि.मी. है | महाद्वीपीय भागों में इसकी औसत मोटाई लगभग 40 कि.मी. है, जबकि महासागरीय भागों में यह मात्र 5 से 10 कि. मी. मोटा है | महाद्वीप का निर्माण ग्रेनाइट जैसी रवेदार चट्टानों से हुआ है तो महासागरीय बेसिनों का निर्माण बेसाल्ट चट्टानों से | इस भाग का घनत्व 2.7 ग्राम है और यह पृथ्वी के सम्पूर्ण आयतन का मात्र 0.5 फीसदी ही है। भू-पटल को दो उपविभागों में विभाजित किया जा सकता है – ऊपरी भू-पर्पटी और निचली भू-पर्पटी |
(a) ऊपरी भू-पर्पटी (Upper Crust)- इसका सम्बन्ध सियाल (Sial अर्थात Si-Silica और Al-Aluminium) भी कहा जाता है। इस परत में सिलिका एवं एल्युमिनियम जैसे तत्वों की प्रधानता है।
(b) निचली भू-पर्पटी (Lower crust)- इस परत का निर्माण सीमा (Sima अर्थात Si-Silica और Ma-Magnesium) कहा जाता हैं। इस परत में सिलिका और मैग्नेशियम जैसे तत्वों की प्रधानता है।
मोहोरोविसिक असंबद्धता या मोहो (Mohorovicic Discontinuity or Moho)-
यह भूपर्पटी की निचली सीमा और मैन्टल के ऊपरी सीमा के मध्य पाया जाता है | जो भूतल से लगभग 35 कि.मी. की गहराई पर मिलती है | इस सीमा से भूकंपीय तरंगों की गति में परिवर्तन हो जाता है क्योंकि इसके ऊपर और नीचे स्थित चट्टानों के घनत्व में पर्याप्त अंतर पाया जाता है | इस असंबद्धता (Discontinuity) की खोज सर्वप्रथम मोहोरोविसिक ने 1909 ई. में किया था जिसके नाम पर इसका नामकरण किया गया |
2 मेंटल (mantle )-
माहो असम्बध्दता से लगभग 2900 किलोमीटर की गहराई तक मेंटल का विस्तार पाया जाता है | इस भाग का घनत्व 3.5 ग्राम है और यह सम्पूर्ण आयतन का 83 फीसदी है। इसमें मैग्नेशियम तथा लोहा जैसी भारी खनिजों की प्रधानता है | यह अचानक भूकम्पी तरंगों के बल से लचीले ठोस की भांति आचरण करने लगता है अर्थात यह दबाब पड़ने पर फ़ैल जाता है और दबाव हटने पर अपने मौलिक स्वरूप को प्राप्त कर लेता है | भूकम्पी तरंगों के आचरण के आधार पर मैन्टल को दो उपविभागों बांटा गया है – ऊपरी मैन्टल और निम्न मैंटल |
(a) ऊपरी मैन्टल (Upper mantle)- यह भाग लगभग 650 कि.मी. की गहराई तक स्थित है | इसका घनत्व 3 - 3.5 है | इसमें
(b) निम्न मैंटल (Lower mantle)- यह भाग लगभग 650 कि.मी. से 2900 कि.मी. की गहराई तक स्थित है | इस भाग का घनत्व 4.5-5.5 है |
दुर्बलता मंडल (Asthenosphere)-
ठोस स्थलमंडल (भूपर्पटी) के नीचे स्थित एक कमजोर पेटी जिसमे चट्टानें काफी गर्म और
रेपेटी असंबद्धता (Repetti Discontinuity)-
यह सीमा
गुटनबर्ग असांतत्य ( Gutenberg discontinuity)-
पृथ्वी की
3. क्रोड (Core)-
भूकंप अभिलेखों के अध्ययन से पता चला है की पृथ्वी के केंद्र में एक गोलाकार क्रोड
(a)क्रोड (Upper Core)- 2900 से 5150 किलोमीटर तक की गहराई वाले भाग को ऊपरी क्रोड कहा जाता है | इस भाग से P तरंगे तो गुजर जाती है परन्तु S तरंगे गायब हो जाती है | s तरंगे तरल माध्यम से नही गुजर सकती है इससे अनुमान लगाया जा सकता है की यह परत तरल अवस्था में हो |
(b)
लेहमान असंबद्धता (Lehmann Discontinuity)-
लेहमान असंबद्धता (Lehmann Discontinuity)-
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