प्राचीन भारतीये भूगोलिक ज्ञान धर्म पर आधारित था। धार्मिक अभिलेखोँ के अतिरिक्त यात्रियों द्वारा किये वर्णन विश्व के विभिन्न प्रदेशों की जानकारी के स्रोत हैं। प्राचीन भारतीय विद्धानों को ब्रह्मांड विज्ञान (Cosmography) और विश्व रचना (Cosmology) के बारे में सही जानकारी थीं। आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भाष्कराचार्य, भाहिला, उत्पल्ल, विजय नंदी आदि विद्वानो ने मानचित्र कला के विकास में योगदान दिया।
भूगोल शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सूर्य सिद्धांत में किया गया जबकि पुराणों में भूगोल, खगोल एवं ज्योतिष चक्र के बीच अंतर स्पष्ट किया गया। प्राचीन भारतीय भगोलशास्त्रियों ने 9 ग्रहों - सूर्य, चंद्र ,मंगल, बुध, बृहस्पति , शुक्र, शनि, राहु, और केतु का वर्णन किया हैं। बुध को हरे रंग का, शुक्र को सफेद, मंगल को लाल, बृहस्पति को पीला और शनि को काला रंग का बताया गया हैं। प्राचीन भारतीय भी भूकेंद्रिक सिंद्धांत (Geocentric) में विश्वास रखते थे।
पृथ्वी शब्द का प्रयोग वेद एवं पुराणों में कई बार किया गया है। ऐतरेय ब्राहमण में पृथ्वी को मंडलाकार बताया गया है। इसमें कहा गया है कि सूर्य न तो उदय होता है और न अस्त , यह तो बस दिन की समाप्ति पर दूसरी ऒर चला जाता है जिससे रात हो जाती है।
पुराणों से अक्षांशो एवं देशांतरों की जानकारी मिलती है। अक्षांशों के आधार पर पृथ्वी को अनेक प्रदेशों में विभाजित किया गया है।
ऋग्वेद में पांच ऋतुओं बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद और हेमंत का उल्लेख मिलता है। जबकि वाल्मीकि रामायण में 6 ऋतुओं का वर्णन मिलता है। जो निम्नलिखित है -
ऋतु (Season ) मास (Months )
बसंत (Spring) मार्च- अप्रैल
ग्रीष्म (Summer) मई -जून
वर्षा (Rainy) जुलाई-अगस्त
शरद (Autumn) सितम्बर -अक्टूबर
हेमंत (Winter) नवम्बर -दिसम्बर
शिशिर (Severe Winter) जनवरी -फरबरी
पौराणिक युग में भारतीय विद्वान ने विश्व को 7 द्वीपों में विभाजित किया था।
द्वीप का नाम वास्तविक स्थान
जम्बू द्वीप (Jambu Dwipa)- भारतीय उपमहाद्वीप
पालक्ष द्वीप (Palksa Dwipa)- फारस देश
शाल्मली द्वीप (Salmali Dwipa)- वर्तमान सोमालीया
कुश द्वीप (Kusa Dwipa)- भूमध्यसागरिये देश
क्रौंच द्वीप (Kraunch Dwipa)- यूरोप
शक द्वीप (Shaka Dwipa)- थाईलैंड , मलेशिया, इण्डोनेशिया
आर्यभट्ट ने पृथ्वी को एक गोलाकार पिंड बताया एवं पृथ्वी की परिधि लगभग 24835 मील बताई जो वास्तविकता के काफी निकट है। उन्होंने चंद्रग्रहण का कारण चन्द्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ना बताया।
वराहमिहिर-
वराहमिहिर ने पञ्च सिद्धांतिका नामक ग्रन्थ की रचना किया। और कोपरनिक्स से 1000 वर्ष पूर्व ही सूर्य केन्द्रीत सिद्धांत दे दिया था | राचार्य ने सिद्धांत-शिरोमणि नामक ग्रन्थ लिखा। उनका यह मानना था की पृथ्वी गोल है एवं अपने गुरुत्वाकर्षण के कारन सभी वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है। इसप्रकार न्यूटन से कई शताब्दी पूर्व ही भारतीयों ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत, सूर्य की स्थिरता, पृथ्वी के अक्षीय एवं कक्षीय भ्रमण के बारे में जानकारी प्राप्त कर ली थी।
ऋग्वेद में इस बात का स्पष्ट उल्लेख मिलता है की चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर भ्रमण करता है। भास्कराचार्य एवं अन्य भारतीय विद्वानो ने पृथ्वी को 360 अंशों में विभाजित किया था। पुनः प्रत्येक अंश को 60 कला (Minutes ) एवं प्रत्येक कला को 60 विकला (Seconds ) में विभाजित किया ।
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